आज से आश्विन मास का शुभारंभ हो रहा है, जो हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह महीना खासतौर पर पितरों और देवी की पूजा के लिए जाना जाता है। आश्विन के कृष्ण पक्ष में जहां पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है, वहीं शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि का आयोजन होता है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस समय किया गया पूजा-पाठ न केवल देवों का आशीर्वाद दिलाता है, बल्कि पितरों की आत्मा को शांति भी प्रदान करता है।
पितरों की तृप्ति का समय: पितृ पक्ष
आश्विन मास के पहले 15 दिन, जिसे पितृ पक्ष कहा जाता है, पितरों की तृप्ति और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित होते हैं। इस दौरान तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है, ताकि पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके। माना जाता है कि इस समय पितर धरती पर आते हैं और जो भी उनके नाम से तर्पण या भोजन करते हैं, उन्हें आशीर्वाद देकर तृप्त होते हैं। इस पूजा से परिवार में शांति और समृद्धि आती है।
देवी पूजा का महत्व: शारदीय नवरात्रि
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दौरान नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान देवी की आराधना से न केवल भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय देवी की उपासना से घर-परिवार में शांति, सुख और समृद्धि का वास होता है।
आश्विन मास का यह समय न केवल पितरों को तृप्त करने का अवसर है, बल्कि देवी दुर्गा की कृपा पाने का भी सुनहरा समय है। सही विधि से पितरों और देवी की पूजा करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
आश्विन मास की पूजा-उपासना विधि
इस महीने में कुछ विशेष पूजा विधियों का पालन करना जरूरी माना जाता है। कृष्ण पक्ष में पितरों की पूजा और तर्पण करते समय श्रद्धा और भक्ति का भाव रखना महत्वपूर्ण है। पितरों के लिए दान, ब्राह्मण भोज और श्राद्ध कर्म करके उन्हें तृप्त किया जाता है।
शुक्ल पक्ष में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, जिसमें सप्तशती का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दौरान अपने आस-पास के वातावरण को पवित्र रखें और देवी को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान करें। इस मास में सूर्य उपासना भी बहुत लाभकारी मानी जाती है, जो मन और शरीर को शांति प्रदान करती है।
इस महीने में खान-पान का ध्यान
आश्विन मास के दौरान खान-पान में भी विशेष ध्यान रखने की परंपरा है।
- इस महीने में दूध का सेवन वर्जित माना जाता है।
- करेला खाने से भी बचना चाहिए।
- शरीर को ढक कर रखें और धूप में घूमने से बचें, क्योंकि इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं अधिक हो सकती हैं।
- हल्के गुनगुने पानी से स्नान करना और त्वचा को साफ रखना भी महत्वपूर्ण है।