मेरी पड़ोस में मेरी सहेली रहती थी जिसका नाम सुशी था, और वह एक हिंदू परिवार से थी। चुकी वह हिंदू थी और गोश्त नहीं खाते थी इसलिए मैं धोखे से उसे गोश्त खिला देती थी। लेकिन उसे इस बारे में पता नहीं चलता था। यह उर्दू के महान लेखक इस्मत चुगताई द्वारा अपनी आत्मकथा A Life in Words मैं लिखी गई है। यह उनकी आत्मकथा ‘क़ाग़ज़ी है पैरहन‘ का ट्रांसलटेड वर्जन हैं।
इस्मत चुगताई उर्दू की प्रतिष्ठित लेखिका में से एक है। वह अपने निडर और बेबाक लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। लेखिका ने हमेशा ही अपने लेख के माध्यम से रूढ़ीवादी नियमों पर निशाना साधा है।
इस्मत चुगताई ने हमेशा ही अपने लेख के माध्यम से ऐसे मुद्दों को उठाया है जो समाज में लोगों को उनके अधिकार से वंचित रखता था। खासकर लेखिका ने महिलाओं के अधिकार को लेकर समाज में चल रहे कुप्रथा पर निशाना साधा है। इसके साथ ही लेखिका ने स्त्रीवाद पर कई सारी लेख लिखें है।
इस्मत चुगताई को अपनी लेख को लेकर कई बार लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ा है। हाल ही में बीबीसी ने इस्मत चुगताई की आत्मकथा का कुछ भाग अपने वेबसाइट पर छापा इसके बाद इसको लेकर सोशल मीडिया पर काफी आलोचना होने लगी।
महिलाओं के अधिकारों को लेकर इस्मत चुगताई का योगदान
इस्मत चुगताई पढ़ी-लिखी परिवार से आती थी। इसलिए शुरू से ही उनका सोचने का नजरिया दूसरों से अलग था। उन्होंने बचपन से ही समाज की परंपराओं और रूढ़िवादिता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया था।
उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और दमन को लेकर कई सारी कहानियां लिखी है। उनकी सबसे चर्चित कहानियों में से एक “लिहाफ” (1942) है, जिसने न केवल साहित्यिक जगत में भूचाल लाया, बल्कि उन्हें विवादों के घेरे में भी ला दिया। इस कहानी में उन्होंने महिलाओं की यौनिकता और समलैंगिक संबंधों को चित्रित किया, जो उस समय के लिए अत्यंत विवादास्पद विषय थे।
चुगताई ने समाज में हो रहे महिलाओं के अधिकार के दमन को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने अपने साहित्य में ऐसे मुद्दों को उठाया जो उस समय के लिए अत्यंत संवेदनशील माने जाते थे, जैसे महिलाओं की यौनिकता, सामाजिक भेदभाव, धार्मिक विभाजन और जातिगत समस्याएं।
इसके साथ ही चुगताई ने अपने आत्मकथा A Life in Words में अपने जीवन में हुई कई ऐसी घटनाओं का जिक्र किया है। जिसे लोग अलग नजरिया से देखते हैं। लेखिका ने ऐसी ही एक घटना का जिक्र किया है जहां पर उनकी एक खास दोस्त थीं सुशी, जो हिंदू धर्म की अनुयायी थीं। जिसे वह धोखे से उसे गोश्त खिला देती थी।
अपने दोस्त को धोखे से खिलाई गोश्त
साल 2018 में बीबीसी द्वारा इस्मत चुगताई की आत्मकथा क़ाग़ज़ी है पैरहन का कुछ भाग अपने वेबसाईट पर पब्लिश किया। जिसमे लेखिका द्वारा लिखा गया है। इसमें वह अपने जीवन में हुए घटना का जिक्र करती है। उनकी पड़ोस में उनकी एक सहेली रहती थी जिसका नाम सुशी था, और वह एक हिंदू परिवार से थी। चुकी वह हिंदू थी और गोश्त नहीं खाते थी इसलिए मैं धोखे से उसे गोश्त खिला देती थी।
इस घटना को लेकर कई लोगों सोशल मीडिया पर अलग अलग तरह के सवाल कर रहे हैं हालांकि उस वक्त की बात है जब वो छोटी बच्ची थी। जिसे आप सरारती कह सकते हैं। बचपन में इस तरह की शैतानियाँ बच्चे करते हैं।
इसके साथ ही वह इस आत्मकथा में यह भी कहती है कि तमाम बंदिशों को तोड़कर मैं उस पॉइंट पर पहुँच चुकी थी जहाँ सिर्फ़ इंसानियत ही मेरा भगवान है।
गूगल ने डूडल के ज़रिए इस्मत चुगताई को याद किया
इस्मत चुगताई का जन्म 21 अगस्त, 1915 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था। गूगल ने उनके 107 वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर उन्हें याद किया है।
इस्मत चुगताई एक ऐसी लेखिका थीं जिन्होंने अपने समय के समाज को गहराई से समझा और उसके उन हिस्सों को उजागर किया जो अनदेखे थे। उनकी लेखनी ने समाज को जागरूक किया और महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।
FAQ-
प्रश्न 1: इस्मत चुगताई कौन थीं?
उत्तर: इस्मत चुगताई उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका थीं, जो अपने साहसी और विवादास्पद लेखन के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने सामाजिक मुद्दों, विशेष रूप से महिलाओं से जुड़े विषयों पर खुलकर लिखा।
प्रश्न 2: इस्मत चुगताई का लेखन क्यों विवादास्पद माना जाता है?
उत्तर: इस्मत चुगताई ने अपने लेखन में महिला कामुकता, समाज की रूढ़िवादी सोच, और हिंदू-मुस्लिम संबंधों जैसे संवेदनशील विषयों पर चर्चा की। उनकी कहानी लिहाफ को लेकर उन्हें कोर्ट तक जाना पड़ा, जिससे उनकी पहचान एक बेबाक लेखिका के रूप में हुई।
प्रश्न 6: इस्मत चुगताई की अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ कौन सी हैं?
उत्तर: लिहाफ के अलावा, इस्मत चुगताई की अन्य प्रमुख रचनाओं में टेढ़ी लकीर, दो हाथ, और छुई-मुई शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों और नारीवादी विचारधारा को प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न 3: इस्मत चुगताई का स्त्रीवाद में क्या योगदान है?
उत्तर: इस्मत चुगताई ने अपने लेखन के जरिए नारी स्वतंत्रता, स्वाभिमान और महिला अधिकारों की पैरवी की। उनकी कहानियों में महिलाओं की अस्मिता, इच्छाओं और संघर्षों का खुलकर चित्रण होता है, जो उन्हें उर्दू साहित्य में नारीवाद की एक अग्रणी आवाज बनाता है।